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Oct 18, 2016 | 3 minutes |

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ये कविता उन दोस्तों के लिए जो देश के तमाम engineering और MBA colleges में पढ़ रहे हैं

क्यों पढ़ रहे हैं, ये वो भी नहीं जानते
क्या पढ़ रहे हैं, ये वो भी नहीं जानते
क्यों आ गए यहाँ पर, ये वो भी नहीं जानते
और कहाँ जाएँगे यहाँ से, ये वो भी नहीं जानते
उन दुःख भरे दिलो के लिए ये एक छोटी सी कविता...

कैसा लगता है जब तुमको कुछ नहीं आता
जब एक सिफ़र पल्ले नहीं पड़ता
जब एक शब्द समझ नहीं आता
सब अल्फ़ाज़ जैसे बेमतलब हों
और सब आवाज़ें जैसे बाँझ हो गयी हों
जिनसे अब कोई मायने जन्म नहीं लेते
ऐसा लगता है कि तुम किसी और कायनात में हो
और ये दुनिया किसी दूसरे ब्रह्मांड में
बीच में बस एक पारदर्शी सा पर्दा
जिससे छन छन कर कुछ अजनबी सा शोर
तुम्हारे कानो में पड़ रहा हो
तुम देख सकते हो लोगों को बोलते हुए
होंठ हिलते, हाथ फेंकते हुए
पर वो बातें समझना, तुम्हारे बस की बात नहीं
वो बातें जो सर के ऊपर से यूँ गुज़र जाती हैं
जैसे तुम्हारे छोटे क़द का मज़ाक़ बना रही हों
वो बातें जो लिखी पढ़ी और कही जाती हैं
उन ख़ास लोगों के लिए, जिनमें से तुम एक नहीं
कैसा लगता है, जब तुम्हें कुछ समझ नहीं आता?
कैसा लगता है दिमाग़ों के उस बाज़ार में
भूस का एक छोटा सा ढेर समेटे हुए
एक दूसरे से पहले जवाब देने की होड़ में भागते लोग
और सवाल के मायने समझने मे लड़खड़ाते तुम
तुम सोचते हो कि मै यहाँ क्यों हूँ?
मै कर क्या रहा हूँ, ये हो क्या रहा है?
इतनी तेज़ी से ये मंज़र बदल क्यों रहा है?
अभी तो पिछला मैंने जेहन में उतारा भी नहीं
ये नया मुद्दा अचानक छिड़ क्यों रहा है?
अभी अभी तो मिला था कुछ,
ये बिछड़ क्यों रहा है?
अन्धाधुन्द सी दौड़ती इस दुनिया में
तुम शाम की सैर पर निकले हो
ग़लती उनकी नहीं
ग़लती तुम्हारी है
भीड़ में घुसने का फ़ैसला तुम्हारा था
पैर में चोट है ये मालूम था
पर दौड़ में हिस्सा लेने का फ़ैसला तुम्हारा था
ख़ैर तो क्या हुआ जो पिछड़ गए
जो गिर गए जो बिछड़ गए
एक और राह जानी जो तुम्हारी नहीं थी
एक और सड़क पकड़ी जो गरम थी बहुत
एक और मकाँ गए जहाँ मेहमाँ से थे
अगली राह जो चुनना, वो ध्यान से चुनना
अगली चाह जो रखना उसे तौल कर रखना
वापिस लौट कर आने में समय बहुत लगता है
चीज़ें छोड़ कर आने में दिल बहुत दुखता है
ज़िंदगी छोटी सी है और मंज़िल बहुत दूर हैं
राहें हज़ार हैं सामने तुम्हारे, और चुननी एक ज़रूर है
हर रास्ता तुम्हारे घर नहीं जाता
हर मंज़िल तुम्हारी अपनी नहीं
भीड़ में चल पड़ना आसां है बहुत
कोने में खड़े होने में जाँ निकलती है
तुम इन्तेज़ार करना, रुकना, ठहरना, विचार करना
वो राह जो तुम्हारी है, वो रात में चमकती है
ये पूरा वो चाँद है जो इन्तेज़ार पे आता है
पर जब भी आता है तो पूरे शबाब पे आता है
इन्तेज़ार करो, धीरज धरो, सब्र रखो
एक दिन मिलेगी राह तुम्हारी भी
एक दिन तुम भी सरपट दौड़ोगे
बस इन्तेज़ार करो।