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Life Before And After MBA

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Gauri Shankar
Gauri Shankar

 

 

MBA ज़िंदगी में शादी की तरह आता है
अपनी तरफ़ ललचाता है, लुभाता है, रिझाता है,
कभी CAT दे के इठलाता है, कभी XAT देके शर्माता है
३ मुस्कुराती हुई लड़की ब्रोशर पे चिपका के, अपनी तरफ़ बुलाता है
राम का नाम ले के अड्मिशन हो भी जाए
तो पहला टर्म भी हनीमून की तरह जाता है
XL मेरी जान, IIM मेरी माँ, MICA मेरी Aunty
आदमी नए कॉलेज को जाने कैसे कैसे बुलाता है
वो काले सूट में सेल्फ़ी, वो लोकेशन का checked इन
वो कॉलेज की जर्सी, वो फ़ेस्बुक, वो linkedin
मनुष्य भविष्य की विपत्ति को भला कब जान पाता है
असली ऐहसास तो बेटा टर्म २ से आता है
जैसे नयी नवेली दुल्हन ने पहली बार सब्ज़ी जलायी हो
और फिर जो धुएँ उठते हैं साहब
और फिर जो खेल शुरू होता है
जैसे बेताल चढ़ जाता था विक्रम के कंधे पे
दाँत गड़ा के MBA ऐसे सवार होता है
साल दो साल की वो यात्रा
वो पीड़ा वो यातना
वो तड़प, वो चुभन
वो बेचैनी, वो बेक़सी
लाल आँखे लिए ज़िंदा स्याह लाशें
कैम्पस में यूँ भटकती रहती हैं रात भर
जैसे गुमशुदा से ग़रीब बच्चे
रेल्वे के प्लैट्फ़ॉर्म पे भटकते हैं
फिर कैम्पस सिलेक्शन की वो गला काट प्रतियोगिता
वो नम्बर, वो package, वो कम्पनी की बातें
नौकरी के इंटर्व्यू रूम में मेज़ के दोनो तरफ़ फ़्रस्ट्रेशन होती है
दोनो के फ़ोन साइलेंट पे होते हैं
और दोनो के फ़ोन में बीवी की ६-६ मिस्ड कोल होती है
एक तरफ़ से enthusiasm और पैशन को fake किया जाता है
दूसरी तरफ़ से गर्व और ज्ञान की नुमायिश होती है
ये सब रोल प्ले हैं
कुछ रस्में हैं, रीति रिवाज हैं जो निभाने होते हैं
जैसे ज़ोर से बोलो के नारे के बाद जय माता दी बोलते हैं
या बीवी के उस ऑक्वर्ड से आइ लव यू के बाद आइ लव यू टू बोल दिया जाता है
ख़ैर अब नौकरी लग भी जाती है तो उसके भी कयीं आयाम होते हैं
पहले जब एक एंजिनीर मात्र थे
तब तनख़्वाह भी कम थी और जॉब रोल एंड rensponsibility में लाइनें भी
जॉब डिस्क्रिप्शन नाम की तो कोई चीज़ ही नहीं थी
सीधा सा हिसाब था
ये सॉफ़्ट्वेर कम्पनी वाले आते थे
जैसे वो homeguard की भर्ती होती है
वो बोलते थे कि २ ४० दे रहे हैं
जिसके पास भी डिग्री है, बाहर ट्रक खड़ा है, बैठ जाओ
ना हमारी माँग थी बहुत, ना उधर से देते थे कुछ
तो resume में झूठ भी थोड़ा काम बोला करते थे
C और JAVA के कुछ पन्ने पढ़े थे
ज़्यादा से ज़्यादा C++ जोड़ दिया करते थे
इससे ज़्यादा फेंकने की ना हमारी औक़ात थी
ना लपेटने की किसी में हिम्मत
ना सर पे कोई लोन था, ना EMI का कोई चक्कर
संडे को पार्क में उलटा लेट कर, धूप में अख़बार पढ़ा करते थे
नौकरियाँ भी बड़े शान से हुआ करती थी
क्लाइयंट की कोल हैंडल हुई तो हुई, वरना मैनेजर को लूप में डाल के
लंच पे चल दिया करते थे
चाय और सुट्टे की टपरियाँ fixed थी, समय निर्धारित थे, और दोस्त मौजूद थे
चीनी कम, पत्ती तेज़, छोटी गोल्ड flake और भुजिया का पैकेट
मतलब १०-२० रुपय में दुनिया जीत लिया करते थे
मैनेजर से बनी, भाईचारे में काम हुआ तो सालों टिक गए
ज़रा सी किसी ने आँख दिखायी, तो अगले महीने स्विच मार लिया करते थे
और अब MBA के बाद की नौकरी?
मानो शाम की सैर से उकतायी हुई ज़िंदगी
अब ट्रेड मिल की तेज़ रफ़्तार पर हाँफ रही हो
मानो हम भौंचक्के से वहीं खड़े हों
और दुनिया अंधाधुँध तेज़ी से कहीं भाग रही हो
जिगर हाथ में थामे और मुस्कान चेहरे पे चिपकाएँ
यूँ ऑफ़िस जाते हैं लोग
मानो सीरिया में दुकान हो और गुलाब बेचने हों
MBA के बाद ये जो २-४ रुपय आ जाते हैं जेब में
खुदा की क़सम बड़े ख़तरनाक होते हैं
मेट्रो के धक्के एकदम से असहनीय लगते हैं
रंग बिरंगी कारे सपने में आती हैं
मकान मालिक के ताने अब सहे नहीं जाते
टपरी की चाई से हम चायोज पर शिफ़्ट हो जाते हैं
सड़क के समोसे अब oily से लगते हैं
गोल गप्पों में मिनरल वाटर चाहिए हमको
और ट्रेन में सेकंड AC से नीचे तो गँवार लोग चलते हैं
गाँव में काली गाय के कच्चे दूध का लौटा gatagat पीने वाले
आज टोंड मिल्क का पैकेट ख़रीद के लाते हैं
वो लोग जिनसे ज़िंदगी में एक गर्ल्फ़्रेंड नहीं बनी
वो बड़ी कम्पनियों में relationship मैनेजर बन जाते हैं
वो लोग जो रेल के डब्बो में खिड़की से घुसते थे
आज कैब में AC कम हो जाए तो transport को मेल लिख डालते हैं
जींस भी जो कपड़ा ले के सिलवाते थे कल तक
आज रेयमोंड्स के सूट पे इतराते हैं
टाई भी इतनी खींच के बाँधते हैं कि adom’s apple में गड्ढे पड़ जाते हैं
ये कंठ लंगोट पहेनने का रिवाज अजीब है बहुत
ये बेजान, बेमतलब, मुर्दा सा कपड़ा
गले में पड़ा लटकता रहता है
कभी पंखे के हवा में फड़फड़ाता है
कभी नज़र बचा कर दाल में जा गिरता है
पहेनने से क्या फ़ायदा है इसको मुझको मालूम नहीं
बस इतना पता है की
उतारने से गले को बड़ा आराम मिलता है
ख़ैर तो फिर उसी फिर बात पे आते हैं
की MBA शादी की तरह होता है
पहले लालच, फिर ख़ुशी के चार पल
फिर दोनो हाथ में सब्ज़ी के थैले
और फिर गालियों का आदान प्रदान होता है
पर ज्ञान से किसी का भला हुआ है कभी?
बिना MBA के सपने वाला कोई Engineer हुआ है कभी?
फ़ीस बड़ी महँगी है और पढ़ाई कमर तोड़ है
पर माया के पाश से कोई बचा है कभी?
जैसे शादी हमारे माँ बाप ने की
और हमारे बच्चे भी करेंगे
वैसे ही MBA हमने किया है
और हमारे बच्चे भी करेंगे।

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