Dear SIBM,
तुम्हें छोड़ने के 6 साल बाद कोई एक दम से किसी दिन फोन आए और कहा जाए कि एक आर्टिक्ल हिन्दी में चाहिए तो ज़ाहिर सी बात है कि खुशी हुई।
SIBM, तुम्हारे साथ 2007 से 2009 तक मेरे दो साल गुजरे, गुज़रे भी क्या बड़ी तेज़ी से भागे। यूं तो कॉलेज कोई भी हो कॉलेज लाइफ कभी कोई नहीं भूल पाता। वैसे भी कॉलेज लाइफ केवल कॉलेज से नहीं बनती। कॉलेज लाइफ बनती है वहाँ के लोगों से, माहौल से और सबसे इंपोर्टेंट उस टाइम से जो कभी लौट के नहीं आने के लिए आता है। SIBM, तुम्हारे पास आने से पहले मेरा कॉलेज को लेकर इम्प्रैशन यही था कि यहाँ तो थोड़े हाई फाई टाइप लोग आते हैं। यहाँ मेरे जैसा लखनऊ का रहने वाला कविता कहानी लिखने वाले average से सॉफ्टवेर इंजीनियर टाइप लड़का खो जाएगा। मैं न तो कभी पढ़ने में तेज़ रहा न कभी गढ़ने में। कुल मिलाकर अगर ‘overall average’ की कभी कोई definition लिखेगा तो मुझे मालूम है मेरा नाम वहाँ सबसे पहला होगा।
2007-09 बैच वालों का नाम SIBM के इतिहास में हमेशा थोड़ा अलग तरह से लिया जाएगा क्यूंकी हम इकलौते बैच हैं जिसने एक साल पुराने कैम्पस में काटे और बचा हुआ एक साल ‘लवले’ के नए कैम्पस में। पुराने कैम्पस के बाद नए कैम्पस में आना ऐसे था जैसे कोई मुंबई के चॉल में रहने वाले किसी लड़के को हनीमून के लिए Switerzerland भेज दिया जाये।
सब कुछ खुला खुला, आस पास पहाड़, क्लास में पढ़ते-पढ़ते खिड़की के बाहर बादल आ जाना। SIMC की बंदियाँ, ट्रेफिक का कोई नामोनिशान नहीं, एक दम भी शोर नहीं, शाम को बैठकर सूरज को डूबते हुए देखना। कुलमिलाकर ऐसा लगता था कि कॉलेज नहीं कहीं छुट्टी पे मस्ती करने आए हुए हैं। ऐसे मस्त माहौल में ये बड़ा मुश्किल था कि मैं लेखक नहीं बन जाता। कॉलेज के दौरान 2-3 प्ले लिखे। क्लास में पीछे बैठकर न जाने कितनी कवितायें। एक आधे छोटे मोटे प्यार भी हुए। कितनी बार लोगों ने मेरी कवितायें झेलीं।
कॉलेज के दौरान जब हमारी लाइफ के कितनी ही ‘funde’ कम्पनी के CTC के हिसाब से बदलते हैं। इन सारी चीजों के बीच में एक चीज जो न मेरे कॉलेज ने बदलनी चाही न ही मेरे बैच ने वो थी कि इसने मुझे वैसे ही अपने साथ टाइम बिताने दिया जैसा मैं था। मुझे बदलने की कोशिश नहीं की। वो कोशिश जो मेरे मोहल्ले के हर अंकल नी की थी, वो कोशिश जो मेरी हर गर्लफ्रेंड ने की थी।
अगर कोई मुझसे तुमसे(SIBM) मेरे रिश्ते के बारे में पूछे तो मेरा जवाब स्टूडेंट और alumni वाला तो बाद में होगा पहले एक जिगरी दोस्त का होगा। ऐसा दोस्त जो कभी बुरी चीज करते हुए आपको रोकता नहीं बल्कि बस आपके साथ हमेशा खड़ा रहता है।
इससे ज्यादा लिखुंगा तो मैं इमोश्नल हो जाऊंगा क्यूंकी लिखने को इनते दोस्त, कहानियाँ और सुबह के इंतज़ार करते बीतीं न जाने कितनी सुबहें हैं जिनका हिसाब किताब करने में एक उम्र लग जाएगी।
दो किताबें लिखने के बाद जिन्दगी को भले अब थोड़ा सा अलग तरह से देखना सीख रहा हूँ लेकिन आज भी कोई मेरी दो किताबों के बदले तुम्हारे(SIBM) के दो साल लौटा दे तो मैं तुरंत हाँ कर दूँगा क्यूंकी उन दो सालों में न जाने कितनी किताबें दबी पड़ी हैं।
कभी कॉलेज लौटकर चाय पीते हुए SIBM तुम्हारे साथ किसी किसी कोने में बैठकर सूरज को डूबते हुए देखने का बहुत मन है। देखो कब तुमसे मिलने आना होता है।
सादर,
दिव्य प्रकाश दुबे
A manager at Idea Cellular Limited, Divya Prakash Dubey has authored two popular Hindi books, 'Terms & Conditions Apply' (2013) & ‘Masala chai' (2014). He studied at SIBM Pune in the batch of 2007-2009 (MBA Marketing).
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